श्री आनंदगिरिजी ने इस कारिका का अर्थ इस प्रकार किया है- 'वर्णाश्रम धर्म से, पापादि मल से जिसको स्पर्श नहीं होता, जो इनसे सर्वथा अछूत रहता है, वह अद्वैतानुभव अस्पर्श है। यह यह योग अर्थात जीव की ब्रह्मभाव से योजना ही अस्पर्श योग है। भगवान शंकराचार्य ...
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